Sunday, June 13, 2010

चुटकी में

उछल कर आसमाँ तक जब गिरा बाज़ार चुटकी में
सड़क पर आ गए कितने ही साहूकार चुटकी में
जो कहते थे नहीं होता कभी है प्यार चुटकी में
चुरा कर ले गये दिल करके आँखें चार चुटकी में
यहाँ पर ईद हो दीपावली हो या कि हो क्रिस्मस
झुलस जाते हैं दंगे में सभी त्योहार चुटकी में
कभी है डूब जाती नाव भी मँझधार चुटकी में
घड़ा कच्चा लगा जाता कभी है पार चुटकी में
पहाड़ी मौसमों-सा रँग बदलता है तेरा मन भी
कभी इक़रार चुटकी में कभी इन्कार चुटकी में
यहाँ दो जून रोटी भी जुटाना खीर टेढ़ी है
मगर उपलब्ध हैं बन्दूक बम तलवार चुटकी में

दो दिलों के दरमियाँ - कुंवर बेचैन

दो दिलों के दरमियाँ दीवार-सा अंतर न फेंक
चहचहाती बुलबुलों पर विषबुझे खंजर न फेंक
हो सके तो चल किसी की आरजू के साथ-साथ
मुस्कराती ज़िंदगी पर मौत का मंतर न फेंक
जो धरा से कर रही है कम गगन का फासला

उन उड़ानों पर अंधेरी आँधियों का डर न फ़ेंक
फेंकने ही हैं अगर पत्थर तो पानी पर उछाल
तैरती मछली, मचलती नाव पर पत्थर न फेंक