Saturday, January 28, 2012

अँधेरी खाइयों के बीच / कुँअर बेचैन

दुखों की स्याहियों के बीच
अपनी ज़िंदगी ऐसी
कि जैसे सोख़्ता हो।

जनम से मृत्यु तक की
यह सड़क लंबी
भरी है धूल से ही
यहाँ हर साँस की दुलहिन
बिंधी है शूल से ही
अँधेरी खाइयों के बीच
अपनी ज़िंदगी ऐसी
कि ज्यों ख़त लापता हो।

हमारा हर दिवस रोटी
जिसे भूखे क्षणों ने
खा लिया है
हमारी रात है थिगड़ी
जिसे बूढ़ी अमावस ने सिया है
घनी अमराइयों के बीच
अपनी ज़िंदगी,
जैसे कि पतझर की लता हो।

हमारी उम्र है स्वेटर
जिसे दुख की
सलाई ने बुना है
हमारा दर्द है धागा
जिसे हर प्रीतिबाला ने चुना है
कई शहनाइयों के बीच
अपनी ज़िंदगी
जैसे अभागिन की चिता हो।

Sunday, January 8, 2012

तुम्‍हारी फाइलों में/अदम गोंडवी

तुम्‍हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आँकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
उधर जमहूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है
लगी है होड़-सी देखो अमीरी औ' गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है
तुम्‍हारी मेज चाँदी की तुम्‍हारे ज़ाम सोने के
यहाँ जुम्‍मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है

Tuesday, January 3, 2012

काजू भुनी प्लेट में ह्विस्की गिलास में / अदम गोंडवी

काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में

आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में