Monday, December 20, 2010

कौरव कौन, कौन पांडव / अटल बिहारी वाजपेयी

कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है|

Monday, December 13, 2010

लगता नहीं है जी मेरा /बहादुरशाह जफ़र

लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
किसकी बनी है आलमे-ना-पायदार में

बुलबुल को बाग़बां से न सय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद थी लिखी फ़स्ले-बहार में

कहदो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहां है दिले दाग़दार में

उम्रे-दराज़ मांग के लाए थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में

दिन ज़िंदगी के ख़त्म हुए शाम हो गई
फैला के पांव सोएंगे कुंजे मज़ार में

कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीं भी मिल न सकी कूए-यार में

Friday, December 3, 2010

तेरे माथे पर कोई, मेरा मुक़द्‍दर देखता/अहमद फ़राज़

हर तमाशाई, फ़क़त साहिल से मंज़र देखता।
कौन दरिया को उलटता, कौन गौहर देखता।।

वह तो दुनिया को, मेरी दीवानगी ख़ुश आ गई,
तेरे हाथों में वगरना, पहला पत्‍थर देखता।।

आँख में आँसू जड़े थे, पर सदा तुझको न दी,
इस तवक्को पर कि शायद तू पलट कर देखता।।

मेरी क़िस्मत की लकीरें, मेरे हाथों में न थीं,
तेरे माथे पर कोई, मेरा मुक़द्‍दर देखता।।

ज़िंदगी फैली हुई थी, शामे-हिज्राँ की तरह,
किसको, कितना हौसला था, कौन जी कर देखता।।

डूबने वाला था, और साहिल पे चेहरों का हुजूम,
पल की मौहलत थी, मैं किसको आँख भरकर देखता।।

तू भी दिल को इक लहू की बूँद समझा है 'फ़राज़',
आँख गर होती तो क़तरे में समंदर देखता।।